उत्तराखंड की सुंदरता जितनी कोमल है उस सुंदरता को बल देने वाली सतह उतनी ही ठोस। यहाँ के युवाओं की उपलब्धियां केवल उत्सव समझकर नहीं मनाई जाती। यहाँ हर उपलब्धि जो प्रदेश और देश का मान बढ़ाती हो उसे एक जीती हुई जंग की तरह मनाया जाता है। एक ऐसी ही जंग जीती है पिथौरागढ़ के रोहित भट्ट ने। पिता के मनरेगा मजदूर होने के बाद भी रोहित ने CDS की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने परिवार में पूरे देश को जोड़ लिया है।
सरहदों पर वर्दी में तैनात लाखों सैनिकों के नाते देवभूमि उत्तराखंड से जुड़े हुए हैं। ये वो सैनिक हैं जो पहाड़ों के सीमित संसाधनों, घर की मजबूरी और सामाजिक तनाव पर जीत प्राप्त कर अपना देखा हुआ सपना जीते हैं। पिथौरागढ़ के बलतड़ी गांव निवासी रोहित भट्ट की कहानी भी बिल्कुल ऐसी ही है। अपने पिता उमेश भट्ट को कठोर परिश्रम करते हुए बचपन से देखने वाले रोहित के लिए परिश्रम जीवन का प्रथम अंश रहा है। परिवार की आर्थिक स्थिति भी हमेशा परिवारजनों से हिम्मत बांधे रखने की उम्मीद भी करती थी और हिम्मत की परीक्षा भी लेती थी। बचपन से ही ऐसी हर परीक्षा, परिवार का साथ पाकर रोहित पास करते हुए आगे बढे हैं। इसी सफलता के क्रम में अब रोहित ने CDS (कंबाइंड डिफेन्स सर्विसेज) की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर अपने घरवालों का माथा गर्व से और ऊंचा कर दिया है।
रोहित की शुरुआती पढ़ाई कक्षा आठ तक गौड़ीहाट विद्यालय से हुई है। इसके बाद इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रोहित ने नवोदय विद्यालय से की, फिर लक्ष्मण सिंह महर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ से स्नातक की डिग्री हासिल की। रोहित के पिता मनरेगा से रोजी कमाते और माता गृहणी हैं। इसी कारण से रोहित के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर रही है। कमज़ोर स्थिति ही हमेशा मज़बूत और अडिग परिवर्तन को जन्म देती है, यह बात भी सच समझनी चाहिए। इसी उदाहरण को देवभूमि उत्तराखंड के सीमान्त क्षेत्र के रहने वाले रोहित अपनी सीख और सफलता से सच करते हुए नज़र आ रहे हैं और हर वर्ग-आयु के लिए प्रेरणा बन रहे हैं। रोहित के पिता उमेश भट्ट ने भी सभी देवी देवताओं को याद करते हुए अपने पुत्र के उज्जवल भविष्य की कामना की है।