कर्नाटक के बीजापुर में एक चबूतरे पर कब्रों की सात कतारें हैं.
पहली चार पंक्तियों में ग्यारह, पाँचवीं पंक्ति में पाँच, और छठी और सातवीं पंक्तियों में सात.
ये कुल 63 कब्रें हैं.
इनकी समान दूरी, आकार और डिज़ाइन से लगता है कि ये कब्रें ऐसे लोगों की हैं जिनकी मृत्यु लगभग एक ही समय में हुई होगी.कब्रों का ऊपरी चपटा हिस्सा ज़ाहिर करता है कि ये सभी महिलाओं की हैं.
कर्नाटक के बीजापुर का नाम साल 2014 में बदलकर विजयपुर कर दिया गया था.
शहर के एक कोने में छिपे हुए इस ‘पर्यटन स्थल’ को ‘साठ कब्र’ के नाम से जाना जाता है.
यह शहर 1668 तक आदिल शाही शासकों की राजधानी हुआ करता था.
बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफ़ज़ल खान ने बीजापुर साम्राज्य के दक्षिणी दिशा में हुए विस्तार में अहम भूमिका निभाई थी.
ये वही अफ़ज़ल ख़ान हैं जिन्हें मराठा सेनापति शिवाजी ने वाघ-नख के वार से मार डाला था.
साल 1659 में बीजापुर के तत्कालीन सुल्तान अली आदिल शाह द्वितीय ने अफ़ज़ल ख़ान को शिवाजी से युद्ध करने के लिए भेजा था.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हेनरी कजिन्स के अनुसार इस अभियान पर जाने से पहले, ज्योतिषियों ने अफ़ज़ल खान से कहा था कि वे युद्ध से जीवित नहीं लौटेंगे.
कजिन्स ने अपनी किताब ‘बीजापुर: द ओल्ड कैपिटल ऑफ द आदिल शाही किंग्स’ में लिखा है कि अफ़ज़ल ख़ान को भविष्यवाणियों पर इतना यक़ीन था कि वह हर क़दम इन्हीं पर गौर फ़रमा कर उठाता था.
हेनरी कजिन्स 1891 से 1910 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पश्चिमी डिविज़न में सुप्रिटेंडेंट थे.
साल 1905 में छपी इस किताब में लिखा है कि रिवायत के मुताबिक़, वो यानी अफ़ज़ल ख़ान अपने महल के पास ही ख़ुद की कब्र और एक मस्जिद का निर्माण करवा रहे थे.
ये दो मंज़िला मस्जिद 1653 में बनकर तैयार हुई थी. ऐसा माना जाता है कि सबसे ऊपरी मंजिल महिलाओं के लिए रखी गई होगी.
ये तारीख मस्जिद की मेहराब में अफ़ज़ल खान के नाम के साथ दर्ज है.
जिस वक्त अफ़ज़ल ख़ान शिवाजी के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ने का आदेश दिया गया था तब तक ये मकबरा पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ था.