साल 1952 में भारत में जब पहले आम चुनाव की बात उठी तो कई लोगों को लगा कि ये कैसे होगा.
करीब 17 करोड़ वोटरों में सिर्फ़ 15 प्रतिशत ही पढ़ और लिख सकते थे. डर था कि चरमपंथी गुट इस मौके का इस्तेमाल सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए करेंगे.
दुनिया की निगाहें भारत पर थीं और चुनौतियों और सवालों के बावजूद नए आज़ाद हुए भारत में सफ़लतापूर्वक चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग की काफ़ी तारीफ़ हुई थी.इस भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पहले सुकुमार सेन और बाद में टीएन शेषन, जेएम लिंगदोह जैसे मुख्य चुनाव आयुक्तों ने मज़बूती दी.
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने का सारा दारोमदार चुनाव आयोग पर ही है.
हम 543 संसदीय सीटों के लिए हो रहे चुनाव के मध्य में हैं और सात चरणों के लिए करीब 97 करोड़ योग्य मतदाता हैं. लेकिन ये चुनाव का दौर ऐसा है जब चुनाव आयोग आरोपों और विवादों के केंद्र में हैं.
चुनाव आयोग पर क्या आरोप लग रहे हैं?
ये है चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ लगने वाले आरोपों की फेहरिस्त-
- सरकारी एजेंसियों का विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ दुरुपयोग
- केजरीवाल और हेमंत सोरेन की मतदान की शुरुआत से पहले गिरफ़्तारी
- भाजपा नेताओं के सांप्रदायिक चुनावी भाषण
- कांग्रेस के खातों के फ्रीज़ होने की ख़बर
- इलेक्टोरल बॉण्ड का मुद्दा
- प्रधानमंत्री मोदी का बांसवाड़ा वाला भाषण जिसमें ‘घुसपैठिए’ और ‘ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाले’ जैसे जुमलों का इस्तेमाल किया गया लेकिन उनकी जगह भाजपा अध्यक्ष को नोटिस जारी किया गया
- चुनाव में कुल वोटों की संख्या की बजाय वोटिंग प्रतिशत जारी किया गया.
इस तरह लगातार कई मुद्दों को लेकर चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है. आरोप लग रहे हैं कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ बीजेपी को लेकर बेहद नर्म है और विपक्ष को लेकर गर्म.
टीएमसी नेता डेरेक ओब्रायन ने कहा कि चुनाव आयोग ‘पक्षपाती अंपायर’ की तरह बर्ताव कर रहा है. अपनी शिकायतों को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन का एक प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से भी मिला.
बीबीसी की कई कोशिशों के बावजूद चुनाव आयोग से इन आरोपों पर जवाब नहीं मिल पाया लेकिन कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के एक सवाल के जवाब में “चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग राजनीतिक दलों पर टिप्पणी करने से बचता है क्योंकि उसे सभी राजनीतिक दलों के साथ सम्मानपूर्वक, सहयोगी रिश्ते में विश्वास है. ये एक स्वस्थ भारतीय लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है.”
‘चुनाव आयोग को निष्पक्ष होना ही नहीं, दिखना भी चाहिए’
जर्मनी के हाइडिलबर्ग विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफ़ेसर और ‘इंडिपेंडेंट पैनल फ़ॉर मॉनिटरिंग इलेक्शंस’ के सदस्य डॉक्टर राहुल मुखर्जी विपक्ष की चिंताओं से सहमत हैं.
वो कहते हैं, “चुनाव आयोग को न सिर्फ़ निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए. आप देखिए कि किस तरह चुनाव आयोग प्रधानमंत्री को हेट स्पीच के लिए फटकार नहीं लगा पाया, बल्कि उसने पार्टी अध्यक्ष को जवाबदेह बना दिया.”
दरअसल, 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों पर टिप्पणी की और ‘घुसपैठिए’ और ‘ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला’ जैसे जुमलों का इस्तेमाल किया.
विपक्ष ने चुनाव आयोग से शिकायत की.
कई हलकों में इस भाषण को मुसलमानों के ख़िलाफ़ ‘हेट-स्पीच’ बताया गया. लेकिन चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री मोदी की जगह भाजपा अध्यक्ष को नोटिस भेजा.
पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा कि अगर विपक्ष चुनाव आयोग के कदमों से खुश नहीं है तो उन्हें न्यायालय का रुख करना चाहिए.
पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत आयोग के कदम से सहमत नहीं हैं, बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “जब शिकायत प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ है तब नोटिस प्रधानमंत्री को भेजिए.”