सात चरणों वाला 2024 लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, चुनावी भाषणों में इस्तेमाल हो रही ‘मुस्लिम विरोधी’ भाषा से देश और विदेश के कई हलकों में फिक्र बढ़ी है.
ये भाषण ऐसे वक्त में सामने आ रहे हैं, जब कई जानकार प्रधानमंत्री मोदी के लगातार तीसरी बार आम चुनाव जीतने की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
हाल के चुनावी भाषणों पर एक पूर्व चुनाव आयुक्त ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा, “मैंने कभी भी चुनावी भाषणों के इस स्तर को नहीं देखा. भाषण इतने ज़हरीले कभी न थे. ये अकल्पनीय है.”
‘भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं’
1993 मुंबई दंगों के बाद शांति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बने मुंबई के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज़्म के इरफ़ान इंजीनियर के मुताबिक, भाषणों से ध्रुवीकरण बढ़ेगा और ये भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
वो कहते हैं, “2014 और 2019 का चुनाव जहां भ्रष्टाचार, अच्छे दिन और राष्ट्रीयता पर लड़ा गया, 2024 का चुनाव “मुस्लिम विरोध” पर लड़ा जा रहा है.”
अमेरिका में विल्सन सेंटर के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगेलमैन के मुताबिक, 400 सीटों का लक्ष्य पाने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है, शायद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा वो सब कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के राजस्थान के बांसवाड़ा में दिए गए भाषण पर अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने एक संपादकीय लिखा था, जिसकी हेडलाइन थी – “नहीं, प्रधानमंत्री.”
दरअसल, राजस्थान की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला देते हुए मुसलमानों पर टिप्पणी की, जिसमें उन्हें ‘घुसपैठिए’ और ‘ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला’ कहा गया था.