
सुप्रीम कोर्ट के एक अधिवक्ता ने चुनाव आयोग को नोटिस भेजकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई करने की मांग की है.
अधिवक्ता ने कहा है कि ‘प्रधानमंत्री चुनाव अभियान के दौरान लगातार हेट स्पीच दे रहे हैं और लोगों को बांटने वाली बातें कर रहे हैं.’
अधिवक्ता का तर्क है कि ये चुनाव से जुड़े क़ानूनों का उल्लंघन है.
कालीसवरम राज नाम के अधिवक्ता ने मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखे पत्र में कहा है कि जनप्रतिनिधि क़ानून की धारा 125 ‘चुनावों के संबंध में वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के किसी भी कार्य को चुनावी अपराध के रूप में परिभाषित करती है.’
अपने नोटिस में अधिवक्ता ने चुनाव आयोग की तरफ़ से जारी आदर्श आचार संहिता के विभिन्न क्लॉज़ का उल्लेख भी किया है.
अधिवक्ता ने अपने पत्र में कहा है-
भारत के चुनाव आयोग की तरफ़ से जारी आदर्श आचार संहिता की धारा 1 में भी यह उल्लेख किया गया है कि कोई पार्टी या उम्मीदवार कोई भी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो परस्पर घृणा को बढ़ाये या विभिन्न जातियों, समुदायों, धर्मों या भाषायी समूहों के बीच तनाव पैदा करे.
आदर्श आचार संहिता के क्लॉज 2 में कहा गया है कि “अपुष्ट आरोपों या तोड़ मरोड़ कर पेश की गई जानकारियों के आधार पर भी किसी पार्टी या उसके कार्यकर्ताओं की आलोचना से बचना चाहिए. ”
क्लॉज़-3 ये कहता है कि वोट हासिल करने के लिए जातीय या धार्मिक भावनाओं के आधार पर अपील नहीं करनी चाहिए.
यही नहीं भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए भी धर्म, जाति या नस्ल के आधार पर लोगों के बीच वैमनस्यता बढ़ाने को अपराध मानती है.
वहीं धारा 153बी के तहत विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य या शत्रुता या घृणा की भावना पैदा करने वाले धार्मिक और जाति आधारित आरोपों को दंडनीय अपराध माना गया है.
कालीसवरम राज ने कहा, “यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान में घृणास्पद भाषणों को बढ़ावा दिया है जो उपरोक्त प्रावधानों और अन्य समान प्रावधानों के ख़िलाफ़ है. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री को क़ानून का कोई डर नहीं है.”
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री की टिप्पणियां धार्मिक कट्टरता पर आधारित हैं, ये विभाजनकारी हैं, भड़काऊ हैं और अपमानजनक हैं. प्रधानमंत्री का ऐसा ज़हरीला चुनावी अभियान भारत में अभूतपूर्व है. देश के क़ानूनों और आदर्श आचार संहिता का ऐसा घोर उल्लंघन करने वाले प्रधानमंत्री को बख़्शने का कोई औचित्य नहीं है.”
कालीसवरम राज का कहना है कि ‘चुनाव आयोग का कार्रवाई करना या ना करना भारत की चुनावी प्रक्रिया की परीक्षा हो सकता है.’
अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चल रहे मुकदमे में नोटिस के साथ इस मुद्दे को रखने का अधिकार सुरक्षित रखा है.