ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक जिस सीट से पांच बार जीते, उस जगह की आंखोंदेखी -ग्राउंड रिपोर्ट

ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल नेता नवीन पटनायक लगातार पांच बार गंजाम ज़िले की हिंजिली विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं. इससे पहले दो बार वो यहीं की आस्का लोकसभा सीट से जीते थे.

नवीन पटनायक के पिता 1996 में आस्का लोकसभा सीट से जीते थे. उनके बाद नवीन ने भी इस सीट से उपचुनाव जीता. साल 2000 से वो हिंजिली विधानसभा सीट से लगातार जीतते रहे हैं.

वो यहां बेहद पॉपुलर हैं और देश में सबसे लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री बने रहने वाले नेताओं की सूची में दूसरे नंबर पर हैं. पवन कुमार चामलिंग के बाद लगातार 24 साल से अधिक समय तक राज्य की कमान संभालने वाले नवीन पटनायक महज दूसरे मुख्यमंत्री रहे हैं.

पश्चिम बंगाल में 23 साल से ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले ज्योति बसु इस सूचि में तीसरे स्थान पर हैं.

पांच बार हिंजिली के विधायक रहने और बीते 25 सालों से प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के बाद भी नवीन पटनायक को लेकर एंटी इनकंबेंसी का बहुत असर नहीं दिखता है. नवीन पटनायक की एक ख़ासियत ये भी है कि वे बिना किसी आक्रामकता के, नरेंद्र मोदी की हिंदुत्व की राजनीति के सामने अपनी राजनीतिक ज़मीन को बचाए रखने में कामयाब रहे हैं.

उनके आलोचक भी स्वीकार करते हैं कि उनके शासन व्यवस्था में कई ऐसे पहलू हैं जिसके चलते लोगों की नाराज़गी उनके प्रति नहीं दिखती है, हालांकि उनके अपने क्षेत्र में दादन खटी यानी रोज़गार के लिए पलायन बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

हालांकि सत्ताधारी बीजेडी इसे मुद्दा मानने से इनकार करती है.

बीजेडी प्रदेश सचिव शिवराम गौड़ दावा करते हैं, “नवीन पटनायक और बीजेडी को छोड़ दें तो हिंजिली में और कुछ नहीं है. पिछली बार वो 60 हज़ार से अधिक वोट से जीते थे, इस बार वो 80 हज़ार से अधिक वोटों से जीतेंगे. उन्होंने इस इलाक़े में काफी विकास किया है. लोग यहां पर खुश हैं.”

वो पलायन को यहां बड़ा मुद्दा मानने से इनकार करते हैं.

वो कहते हैं, “हिंजिली कृषि प्रधान इलाक़ा है, हम खेती पर निर्भर हैं. रोज़गार के लिए पलायन की जो बात हो रही है, ऐसा कुछ नहीं है. हर राज्य से लोग बाहर जाते हैं. हम खेती पर निर्भर हैं, उन्हें जो कुछ समय मिलता है उसमें वो अतिरिक्त रोज़गार के लिए बाहर जाते हैं लेकिन हमारे इलाक़े में रोज़गार के लिए पलायन नहीं है.”

कैसा है हिंजिली चुनाव क्षेत्र?

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से क़रीब 170 किलोमीटर दूर हिंजिली के एक तरफ़ ऋषिकुल्या नदी और दूसरी तरफ़ घोड़ाहाड़ नदी बहती है. ये विधानसभा क्षेत्र गंजाम ज़िले और आस्का लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है.

साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार, यहां वोटरों की संख्या क़रीब 22 लाख है और जानकारों की माने तो यहां की लगभग आधी आबादी पलायन कर या तो महाराष्ट्र या फिर सूरत में बसी हुई है.

साल 1997 में पिता बिजयानंद पटनायक, जिन्हें लोग बिजू पटनायक के नाम से जानते हैं, के निधन के बाद ओडिशा से दूर रहकर पढ़ाई पूरी करने वाले नवीन पटनायक ने राजनीति में कदम रखा था.

राज्य की भाषा न बोल पाने वाले नवीन ने आस्का से उपचुनाव जीता और फिर लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. साल 2000 में पद से इस्तीफ़ा देकर हिंजिली से विधानसभा चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया.

शिवराम गौड़ कहते हैं, “साल 2000 में बाढ़, साइक्लोन, सूखा, ग़रीबी और बच्चा बिक्री करने जैसी समस्याएं थी. इसके अलावा सरकार के सामने ओवरड्राफ्ट की भी मुश्किल थी. ऐसे में उन्हें लोगों का समर्थन मिला.”

54 साल की उम्र में इस सीट से जीतकर पहली बार मुख्यमंत्री बने नवीन पटनायक अब 78 साल के हो चुके हैं. लेकिन इतने लंबे वक्त में यहां पलायन की समस्या हल नहीं हो सकी, बल्कि उसने और गंभीर रूप लिया है.

हिंजिली के मुख्य शहर हिंजिलीकट से क़रीब छह किलोमीटर दूर सारू गांव है. 4500 लोगों के इस गांव में तकरीबन आधे घरों पर ताले लटके हैं. गांव में जिन लोगों से हमारी मुलाक़ात हुई उन्होंने बताया कि पलायन के कारण इस गांव और आसपास के कई और गांवों में वोटिंग बेहद कम होती है.

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