OBC Census Bihar जातिगत जनगणना बिहार सरकार का एक ईमानदार कदम, Surender Kumar
इस देश में जंगल में गावों में कितने जानवर है , कितने पेड़ है इन सबकी गिनती है लेकिन कितने पिछड़े जाति के है इनकी गिनती नहीं है
ओ बी सी की संख्या कितनी है देश में इसका अनुमान सिर्फ ये लगाया जाता है कि इनकी संख्या लगभग साठ प्रतिशत से ज्यादा है लेकिन प्रशासन में नौकरियो में इनकी भागीदारी कुल चार प्रतिशत भी नहीं है और समबसे कमाल की बता तो यह है कि क्लास ए में तो ये लोग न के बराबर है
इसी तरह एस सी एस टी की जनसँख्या भी पच्चीस प्रतिशत से ज्यादा है लेकिन इनकी भी नौकरी और बड़े बड़े पदों पर नुमायन्दगी दस ७ प्रतिशत तक भी नहीं पहुच पाई है जिसका कारण स्र्कार्मे बैठे लोगो ने ईमानदारी से काम नहीं लिया और किसी न किसी बहाने से इनका हक कही और जाता गया तो सवाल यह है कि आखिर कौन लोग है जो देश और समाज के इतने बड़े हिस्से से उनका सारा हक छीन कर खा गए
बस इसी बात का विरोध है उन लोगो के द्वारा कि जातिगत जनगणना न कराई जाय नहीं तो इससे समाज में वैमनस्य बढेगा जबकि हकीकत यह है कि जातिगत जनगणना से न सिर्फ इन लोगो की पोल खुलेगी बल्कि सरकार के पास साफ़ साफ़ डाटा होगा जिसके आधार पर भविष्य की विकास योजनायो को अंजाम दिया जा सकेगा जो कि किसी भी राष्ट्र के लिए बहुत जरूरी है
बिहार में नीतीश कुमार सरकार जातिगत जनगणना कराने जा रही है. इसका काम शनिवार यानी 7 जनवरी से शुरू होगा. हालांकि, बड़े अफ़सोस की बात है केंद्र इसके खिलाफ रही है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी. केंद्र का कहना था कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है. पर लेकिन अब नीतीश सरकार ने एक बोल्ड कदम उठाया है लेकिन जातिगत जनगणना की जरूरत क्यों?
क्यों जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में तर्क ये है कि 1951 से एससी और एसटी जातियों का डेटा पब्लिश होता है, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का डेटा नहीं आता है. इससे ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल होता है और यही कारण है अब तक इन पिछड़ी जातिओ को इनका हक नहीं मिल पाया है ,
हाल ही में उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में ओ बी सी आरक्षण के लिए हाई कोर्ट ने मना कर दिया और उसमे कहा गया सरकार पहले एक कमिशन बनाए फिर ओ बी सी की गिनती कराए तब जाकर इनको आरक्षण दे , तो अब आप सोचिये कितना अच्छा तरीका निकाला एक इतने बड़े वर्ग को उनके अधिकारों से वंचित रखने का लेकिन जब बात आई ई डब्लू सवर्ण आरक्षण की तो सुप्रीम कोर्ट ने बिना सवर्ण जाति आयोग बनाए , बिना उनकी गिनती करवाए और तो और विशेष अधिकारों के तहत सवर्णों को आरक्षण दे दिया यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं सोचा कि गरीब तो गरीब होता है चाहे वो ऊँची जाति का हो या निंची जाति का लेकिन सवर्णों की गरीबी आठ लाख कमाने पर भी गरीब है और नीची जाति की गरीबी देड लाख कमा लिए साल में तो गरीब नहीं है
भारत में जनगणना की शुरुआत औपनिवेशिक शासन के दौरान वर्ष 1881 में हुई।
जनगणना का आयोजन सरकार, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य लोगों द्वारा भारतीय जनसंख्या से संबंधित आँकड़े प्राप्त करने, संसाधनों तक पहुँचने, सामाजिक परिवर्तन, परिसीमन से संबंधित आँकड़े आदि का उपयोग करने के लिये किया जाता है। हालाँकि 1940 के दशक की शुरुआत में वर्ष 1941 की जनगणना के लिये भारत के जनगणना आयुक्त ‘डब्ल्यू. डब्ल्यू. एम. यीट्स’ ने कहा था कि जनगणना एक बड़ी, बेहद मज़बूत अवधारणा है लेकिन विशेष जाँच के लिये यह एक अनुपयुक्त साधन है।
सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC):
वर्ष 1931 के बाद वर्ष 2011 में इसे पहली बार आयोजित किया गया था। लेकिन जातिवादी सरकार ने अभी तक इस डेटा को उजागर नहीं किया है जिसमे तर्क है सामाजिक भेदभाव बड जाएगा