राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से क़रीब चार घंटे के सफ़र के बाद, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आख़िरी छोर पर एक बड़ा झुमका नज़र आता है, ये निशानी है कि आप बरेली पहुंच गए हैं.
राष्ट्रीय राजमार्ग 530 शहर के बाहर से होते हुए लखनऊ की तरफ़ आगे बढ़ जाता है, इसी के नीचे से निकला बरेली-नैनीताल रोड किसी भी लिहाज से नेशनल हाइवे से कम नहीं है.
115 रुपये का इकतरफ़ा टोल चुकाने के बाद पीपलसाना चौधरी गांव से जैसे ही आप हाइवे से उतरते हैं, तेज़ी से आगे बढ़ते भारत और पीछे छूट रहे गांवों का फ़र्क़ साफ़ नज़र आने लगता है.
यहां से बुझिया गांव की तरफ जाने वाली सड़क बदहाल है. गड्ढों में हाल ही में डाली गई ईंट-रोढ़ी ने मुश्किल कुछ आसान तो की है लेकिन ख़त्म नहीं.
क़रीब 1500 लोगों की आबादी वाले इस गांव के लोगों ने टूटी सड़क को मुद्दा बनाकर चुनाव का बहिष्कार किया है.
सोशल मीडिया से होते हुए बात जब मीडिया और फिर प्रशासन तक पहुंची तो आनन-फानन में गड्ढे भरने का काम किया गया. लेकिन गांव के लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं.
रोड नहीं तो वोट नहीं’
गांव के आख़िरी छोर पर परचून की दुकान चलाने वाला एक युवक सहमा हुआ है. सड़क की मांग को लेकर बने व्हाट्सएप ग्रुप ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ में उसने एक मैसेज किया था. अगले दिन स्थानीय पुलिस उसे पकड़कर चौकी ले गई.
युवका का दावा है, “पुलिस ने कहा कि बहुत मैसेज डाल रहे हो ग्रुप में, ज़्यादा बोलोगे तो मुक़दमा दर्ज कर देंगे. शांत रहो.”
हालांकि इस युवक को शाम को छोड़ दिया गया. गांव के कुछ अन्य लोगों का दावा है कि उनके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ.
हालांकि पुलिस प्रशासन ऐसी किसी सख्ती से इनकार करता है. बहरहाल सच यह है कि अब सड़क के लिए खड़ा हुआ आंदोलन परवान चढ़ने से पहले ही ठंडा हो गया है.
यहीं के एक युवा, जो ग्रुप में काफ़ी सक्रिय रहे हैं, कहते हैं, “अभी तो सड़क की हालत कुछ ठीक है, बरसात में रोज़ाना यहां बाइकें गिर जाती, टुकटुक पलट जाती, कई लोगों को चोट लगी, हर स्तर पर मांग उठायी लेकिन कुछ नहीं.”
कई दशक से बीजेपी के समर्थक और मोदी के फैन दामोदर मौर्य कहते हैं, “हमारी एक सड़क की मांग थी, जिसे दस साल में पूरा नहीं किया गया, हम वोट किसलिए डालें?”