रामेश्वर साव बिहार के औरंगाबाद में जिस गाँव के हैं, वहाँ कोई भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता है. आसपास के गाँवों में भी मुसलमान नहीं हैं.
पढ़ाई के दौरान भी किसी मुसलमान से मुलाक़ात नहीं हुई. कम उम्र में शादी के बाद ज़िम्मेदारियाँ बढ़ीं तो रोज़गार का संकट खड़ा हुआ. 2015 में रामेश्वर को रोज़गार की तलाश में सऊदी अरब जाना पड़ा.
हिंदू बहुल गाँव, समाज और देश में रह रहे रामेश्वर साव के लिए इस्लामिक देश सऊदी अरब पहुँचना उनकी ज़िंदगी की अहम घटना थी.
रामेश्वर बताते हैं कि जल्द ही मुसलमान उनके रूममेट बन गए. कुछ मुसलमान भारत के थे और कुछ पाकिस्तान के.रामेश्वर के मन में पाकिस्तान को लेकर मीडिया के ज़रिए छवि बनी थी कि यहाँ के लोग ‘आतंकवादी और कट्टर’ होते हैं. मुसलमानों को लेकर भी रामेश्वर के मन में यही छवि थी
रामेश्वर साव कहते हैं, “मुसलमानों और पाकिस्तानियों के साथ रहते हुए मेरे मन की कई धारणाएँ बदलीं. पहले ऐसा लगता था कि मुसलमान हिंदुओं से नफ़रत करते हैं. लेकिन सच यह था कि मैं मुसलमानों से नफ़रत करता था. मेरे मन से मुसलमानों को लेकर नफ़रत ख़त्म हुई. दोस्ती ऐसी हुई कि पाकिस्तान के लोग मुश्किल में मेरी मदद करते थे और उन्हें कोई ज़रूरत होती थी तो मैं मदद करता था. हम साथ में खाना भी खाने लगे.”
रामेश्वर अपने व्यक्तित्व में इस बदलाव को काफ़ी अहम मानते हैं. उन्हें लगता है कि अगर वह सऊदी अरब नहीं जाते तो कई सच्चाइयों से नावाक़िफ़ रह जाते.
बिहार में सिवान के चांदपाली मौजा गाँव में बड़ी आबादी मुसलमानों की है.
यहाँ हिंदू के 10-12 घर ही हैं. इस गाँव के हर घर से एक या दो पुरुष खाड़ी के इस्लामिक देशों में नौकरी करते हैं.
गाँव के पाँच सौ से ज़्यादा लोग खाड़ी के देशों में रहते हैं. खाड़ी के देशों की कमाई का असर भी इस गाँव में साफ़ दिखता है. गाँव में कोई भी घर मिट्टी का नहीं है.
राजन शर्मा इसी गाँव से हैं. उनके पास कोई रोज़गार नहीं था. राजन बताते हैं कि सिवान में रहते हुए रोज़ सौ रुपए कमाना भी मुश्किल था.
एक दिन राजन से गाँव के ही सोहराब अली ने पूछा कि क़तर काम करने जाओगे? राजन ने हाँ करने में बिल्कुल देरी नहीं की. सोहराब ने ही उनके लिए वीज़ा बनवा दिया.
राजन शर्मा पिछले नौ सालों से क़तर में रह रहे हैं और हर महीने 30 हज़ार रुपए बचा लेते हैं. क़तर की कमाई से गाँव में ही राजन ने तीन मंज़िला घर बनवा लिया है. राजन अपने भाई की शादी में गाँव आए हुए हैं लेकिन गाँव आकर उन्हें निराशा हुई.
राजन बताते हैं, “अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मौक़े पर हमारे गाँव के पास से एक जुलूस गुज़रा जो जानबूझकर मुस्लिम इलाक़ों में चिढ़ाने के लिए घुसने की कोशिश कर रहा था. किसी तरह मामले को सँभाला गया.. नहीं तो सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता था.”
राजन कहते हैं, “मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ. मैंने अपनी माँ से जाकर कहा कि हमारे राम ऐसे तो नहीं थे. वह राजा की तरह रहते थे और प्रजा का ख़्याल रखते थे. राम के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा है. पिछले दस सालों में ऐसी चीज़ें बढ़ी हैं.”
क़तर की राजधानी दोहा में राजन के रूममेट चांदपाली के ही मोहम्मद वसीम हैं. वसीम के अलावा दो और लोग हैं लेकिन राजन इकलौते हिंदू हैं.
राजन के लिए मुसलमान साथियों ने कमरे के ही एक कोने में छोटा-सा मंदिर बनवा दिया है. राजन कमरे में ही पूजा करते हैं और मुसलमान दोस्त भी उसी कमरे में नमाज़ पढ़ते हैं.
राजन कहते हैं, “क़तर में मेरी तबीयत बहुत ज़्यादा ख़राब हो गई थी. बिस्तर से उठना मुश्किल था. वसीम भाई मेरे कपड़े तक धोते थे. क्या ऐसी ही मोहब्बत देश के भीतर नहीं रह सकती है?”